जातक (कर्ता) सबसे पहले पीपल पर दुग्ध-मिश्रित जल अर्पण करे और ह्रदय से भगवान् विष्णु को नमस्कार करें , इसके बाद दायें तरफ घी का एवं बांयें तरफ तेल का दीपक तथा धूप जलाएं । तेल के दीपक के निचे उड़द और काले तिल रखें , घी के दीपक के नीचे चने की दाल और गुड रखें । इसके बाद पीपल की जड़ में ही गणपति का ध्यान करें और सम्पूर्ण पाप-निवृति हेतु संकल्प करें । तदोपरांत जड़ में ही सूक्ष्म गणपति पूजन करें और पीपल को विष्णुमय समझते हुए षोडशोपचार से पूजन - प्रार्थना करें । इसके बाद परिक्रमा प्रारंभ करें । प्रत्येक परिक्रमा में एक घी की बत्ती जलते हुए घी के दीपक में जलाएं । एक मिठाई व एक फल पीपल को स्पर्श कर पात्र में रखें इसके साथ-साथ दुग्ध-मिश्रित जल व फूल भी पीपल की जड़ में चढाते रहें और सूत लपेटते हुए परिक्रमा करें । परिक्रमा के दौरान अनवरत रूप से "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय " , इस द्वादश अक्षर मंत्र का जाप अवश्य करते रहना चाहिए । इसी प्रकार १०८ परिक्रमा सम्पूर्ण करें । तदोपरांत पीपल को पकड़कर प्रार्थना करें । परिक्रमा उपरांत पात्र के प्रसाद को वितरित करें व स्वयं भी ग्रहण करें कारण की यह भगवान् विष्णु का प्रसाद है ।
सोमवती अमावश्या को किया गया यह प्रयोग तुंरत फलदायी होता है , कारण पीपल-वृक्ष में सभी देवी-देवताओं का वास माना गया है। और हमारे शास्त्रों में साक्षात् 'विष्णु-रूप ' की संज्ञा दी गयी है । अतः यह प्रयोग मानव को रोगों से मुक्ति दिलाता है , विद्यार्थी को पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है ,विवाह की सभी रुकावटें दूर होती है, कारोबार में वृद्धि होती है ,उजडा हुआ घर पुनः वस् जाता है एवं मानव जघन्य पापों से मुक्त हो जाता है , उसकी सारी मुसीबतें समाप्त हो जाती है और उस व्यक्ति के मस्तिष्क में अखंड शांति की अनुभूति होती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यदि देखा जाये तो पीपल एक ऐसा वृक्ष है जो चौबीस घंटे ऑक्सीजन देता है। ऑक्सीजन यानि प्राण-वायु । इस रहस्य को जानकर हमारे ऋषियों ने पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करने और पीपल के वृक्ष के निचे बैठकर तप करने का मार्ग खोजा । इसका दूसरा वैज्ञानिक कारण यह भी था की पीपल के पत्तों में जो तरल पदार्थ होता है और मनुष्य में जो तरल पदार्थ होता है वह एक समान है । अतः दोनों के बीच तारतम्य स्थापित हो जाता है और ज्ञान की धारा प्रवाहित हो उठती है । इसलिए हमारे ज्ञानियों ने कहा की मनुष्य को संकल्प लेकर पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए । इस परिक्रमा के दौरान आप ऑक्सीजन के प्रभाव क्षेत्र में रहते हैं । एक तरह से पत्तों से ऑक्सीजन झरनों की तरह झरता है और आप उसमें सराबोर हो जाते हैं। आपके मन में शांति आ जाती है, संकल्प के प्रति आस्था जाग जाती है और तनाव स्वतः ही खत्म होने लगता है । -- आचार्य रंजन( ज्योतिषाचार्य & वास्तु विशेषज्ञ ),बेगुसराय (बिहार)