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सोमवती अमावश्या को किया गया यह प्रयोग तुंरत फलदायी होता है , कारण पीपल-वृक्ष में सभी देवी-देवताओं का वास
माना गया है। और हमारे शास्त्रों में साक्षात् 'विष्णु-रूप ' की संज्ञा दी गयी है । अतः यह प्रयोग मानव को रोगों से मुक्ति दिलाता है , विद्यार्थी को पूर्ण विद्या की प्राप्ति होती है ,विवाह की सभी रुकावटें दूर होती है, कारोबार में वृद्धि होती है ,उजडा हुआ घर पुनः वस् जाता है एवं मानव जघन्य पापों से मुक्त हो जाता है , उसकी सारी मुसीबतें समाप्त हो जाती है और उस व्यक्ति के मस्तिष्क में अखंड शांति की अनुभूति होती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यदि देखा जाये तो पीपल एक ऐसा वृक्ष है जो चौबीस घंटे ऑक्सीजन देता है। ऑक्सीजन यानि प्राण-वायु । इस रहस्य को जानकर हमारे ऋषियों ने पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करने और पीपल के वृक्ष के निचे बैठकर तप करने का मार्ग खोजा । इसका दूसरा वैज्ञानिक कारण यह भी था की पीपल के पत्तों में जो
तरल पदार्थ होता है और मनुष्य में जो तरल पदार्थ होता है वह एक समान है । अतः दोनों के बीच तारतम्य स्थापित हो जाता है और ज्ञान की धारा प्रवाहित हो उठती है । इसलिए हमारे ज्ञानियों ने कहा की मनुष्य को संकल्प लेकर पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए । इस परिक्रमा के दौरान आप ऑक्सीजन के प्रभाव क्षेत्र में रहते हैं । एक तरह से पत्तों से ऑक्सीजन झरनों की तरह झरता है और आप उसमें सराबोर हो जाते हैं। आपके मन में शांति आ जाती है, संकल्प के प्रति आस्था जाग जाती है और तनाव स्वतः ही खत्म होने लगता है । -- आचार्य रंजन( ज्योतिषाचार्य & वास्तु विशेषज्ञ ),बेगुसराय (बिहार)
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