** क्या होता है साढ़े -सती ......?
जन्म-राशि अर्थात चन्द्र राशि ( चंद्रमा जिस राशि में रहती है ) से गोचर में जब शनि देव द्वादश , प्रथम एवं द्वितीय स्थानों में परिभ्रमण करते हैं ,तो इस साढ़े सात वर्ष ( क्योंकि शनि एक राशि में लगभग ढाई - वर्षों तक चलते है ) के समय को शनि की साढ़े - सती कहते हैं !
उदाहरण के लिए , यदि आपकी जन्म राशि कर्क है तो शनि देव गोचर में जब मिथुन , कर्क व सिंह राशि में भ्रमण करेंगे तो शनि की साढ़े - सती कहलाएगी !
प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में तीन चक्र / बार साढेसाती आती है , और यह लगभग साढ़े बाईस वर्ष के उपरांत पुनः आगमन होता है तथा अगले साढ़े सात व र्ष तक अपने प्रभाव में जातक / जातिका को रखते हैं !
शनि के साढ़े-साती का प्रथम चक्र अत्यंत प्रबल होता है इस अवधि में आपको शारीरिक कष्ट , अवरोध एवं अनेकानेक प्रकार से क्षति उठानी पड़ सकती है ! इस अवधि में माता - पिता को भी कष्ट उठाना पड़ता है !
द्वितीय आवृति में शनि देव अपेक्षाकृत मध्यम प्रभाव डालता है ! इस अवधि में आपकी अपने श्रम व संघर्ष से उन्नति होगी ! मानसिक अशांति अवश्य बनी रह सकती है , किन्तु भौतिक उन्नति अवश्य होती है ! माता - पिता या बुजुर्गों का वियोग सहन करना पड़ सकता है !
तृतीय आवृति में शनि देव कठोर फल देते हैं ! इस अवधि में मारक का प्रभाव अधिक होने के कारण आपको प्रबल शारीरिक कष्ट हो सकता है ! इस आक्रमण से सौभाग्यशाली ही सुरक्षित रह पाते हैं !
प्राचीन काल से सामान्य भारतीय जन-मानस में यह धारणा प्रचलित है की शनि की साढ़े-सती बहुधा मानसिक , शारीरिक और आर्थिक - दृष्टि से दुखदायी एवं कष्ट-प्रद होती है ! शनि की साढ़े-सती सुनते ही लोग चिंतित और भयभीत हो जाते हैं ! साढेसाती में असंतोष , निराशा , आलस्य , मानसिक तनाव , विवाद , रोग -रिपु -ऋण से कष्ट , चोरों व अग्नि से हानि और घर - परिवार में बड़ों - बुजुर्गों की मृत्यु जैसे अशुभ फल होते हैं ! शास्त्र शनि की साढ़े-सती का फल इस प्रकार बताते हैं --
" कल्याणं खलु यच्छति रविसुतो राशौ चतुर्थष्ट में व्याधि बन्धुविरोध्देश्गम्नम क्लेश्चम चिंताधिकम !!
राशौ द्वादश-शिर्श्जन्म्ह्रिद्ये पादौ द्वितीये शानिर्नानाक्लेश -करोअपी दुर्जन भयम पुत्रान पशून् पिदनम !!
हानिः स्यांमर्नम विदेश्गाम्नाम सौख्यं च साधारणं रामारिध्य- विनाशनम प्रकृते तूर्याष्ट्मे वाथवा !! "
अर्थात् , चन्द्र राशि से चौथे या आठवें स्थान में शनि आने पर रोग , भाइयों से लड़ाई , विदेश में प्रवास , कष्ट , चिंता ये फल मिलते हैं ! चन्द्र राशि से बारहवें , पहले या दूसरे स्थान में गोचर के शनि से ( साढ़े-सती में ) सिर , ह्रदय , पैर में पीडा होती है , दुष्टों से भय होता है एवं पुत्रों और पशुओं को कष्ट होता है !
यह सामान्यतः पाया गया है कि साढ़े-सती की तीन ढैया में से एक शुभ , एक मध्यम तथा एक अशुभ फलदायी होती है ! इसका निर्णय शनि के अष्टक वर्ग तथा सर्वाश्टक वर्ग में प्राप्त शुभ रेखाओं की संख्या के आधार पर किया जाता है ! यदि शनि अष्टक वर्ग में चार रेखाएं तथा सर्वाश्टक वर्ग में अठाईस रेखाएं हैं तो शनि देव मिश्रित फलदायी होते हैं ! इससे कम हैं तो अशुभ तथा अधिक होने पर शुभ फल प्रदान - कर्ता होते हैं !
साढ़े-सती के प्रथम ढैया का फल :
इस अवधि में शनि चन्द्र राशि से बारहवें भाव में भ्रमण करते हैं तथा दूसरे , छठे , नवें भावों पर पूर्ण दृष्टि होती है ! प्रथम ढैया में शनि का निवास सिर पर रहता है ! अतः मानसिक - शारीरिक सुख में कमी आती है ! नेत्रों की व्याधि , चश्में आदि का प्रयोग संभव है ! अचानक आर्थिक हानि होती है ! अवांक्षित अतिरिक्त व्यय , अपव्यय होता है ! जातक आर्थिक रूप से व्यथित रहता है आय की अपेक्षा व्यय अधिक होता है ! कटुम्ब से वियोग हो सकता है ! परिवार में अशांति रहती है ! पिता को कष्ट होता है ! पिता से तनाव होता है ! भाग्य पतन का भय रहता है ! कार्यों में परेशानियां एवं विलंब होता है ! प्रयासों के सुफल नहीं मिलते हैं ! लोगों से सहयोग नहीं मिलता ! राजकीय लोगों से पीडा संभव है ! आध्यात्मिकता में रूचि जाग्रत होती है ! दुर्घटनाओं का भय होता है ! व्यर्थ भ्रमण होता है ! दूर की यात्रा करनी पड़ती है , जिसमें कष्ट उठाना पड़ता है ! यह शनि पंचम भाव से अष्टम होता है , अतः संतान के लिए भी यह समय कष्टप्रद होता है !
साढ़े-सती की द्वितीय ढैया का फल : इस अवधि में शनि चन्द्र राशि पर भ्रमण करता है तथा तीसरे , सातवें एवं दशवें भावों पर पूर्ण दृष्टि होती है ! शनि इस ढैया में उदर भाग में रहता है ! अतः शरीर के सम्पूर्ण मध्य भाग में रोग व्याधि संभव होती है ! शारीरिक तेज प्रभावित होता है ! बुद्धि काम नहीं करती , गलत निर्णय होते हैं ! भाईयों से तथा व्यापार में साझीदार से विवाद होता है ! पत्नी को शारीरिक कष्ट अथवा पत्नी से झगडा होता है ! आर्थिक चिंताएं निरंतर रहती है ! मानसिक स्तर पर प्रबल उद्वेलन रहता है ! व्यर्थ का भय व्यथित करता है ! कोई कार्य मनोनुकूल नहीं होता , अपूर्ण कार्य दुखी करते हैं एवं व्यवधान प्रबल रहते हैं ! पारिवारिक एवं व्यावसायिक जीवन अस्त-व्यस्त रहता है ! किसी सम्बन्धी को मारक कष्ट होता है ! दूर स्थानों की यात्राएं , शत्रुओं से कष्ट , आत्मीय जनों से अलगाव , व्याधि , संपत्ति क्षति व सामाजिक पतन , मित्रों का अभाव एवं कार्यों में अवरोध इस चरण के फल हैं !
साढ़े-सती के तृतीय ढैया के फल :
इस अवधि में शनि चन्द्र राशि से दूसरे भ्रमण करता है तथा चौथे , आठवें , ग्यारहवें भावों पर पूर्ण दृष्टि होती है ! उतरती साढ़े - सती में शनि पैरों पर रहते हैं ! अतः इस अवधि में पैरों में कष्ट होता है ! शारीरिक दृष्टि से निर्बलता आती है ! दैहिक रूप से जड़ता का अनुभव होता है , शरीर में आलस्य रहता है ! आनंद बाधित होता है ! व्यर्थ के विवाद उत्त्पन्न होते हैं ! आत्मीयों से अकारण संघर्ष होता है , उन्हें गंभीर बिमारी अथवा किसी को मरण तुल्य कष्ट होता है ! सुखों का नाश होता है , पदाधिकारी पर संकट आता है ! व्यय अधिक होता है ! पैसा आता है किन्तु उसी गति से व्यय भी होता है ! निम्न श्रेणी के लोगों से कष्ट मिलता है ! अष्टम पर दृष्टि होने से आयु प्रभावित होती है ! चतुर्थ पर दृष्टि होने से गृह सुख , माता - सुख , वाहन सुख आदि तथा भौतिक सुख-सुविधाओं में बाधा आती है !
*** अनुभव में मैंने पाया है की सम्पूर्ण साढ़े-सती पीडा दायक नहीं होते हैं , बल्कि साढ़े-सती के समय में कई लोगों को अत्यधिक शुभ फल जैसे विवाह , संतान का जन्म , नौकरी - व्यवसाय में उन्नति , चुनाव में विजय , विदेश यात्रा इत्यादि भी मिलते हैं ! अतः यदि जन्म कुंडली में शनि बलवान ( उच्च , स्व्क्षेत्रिय आदि ) या योगकारक हो या चन्द्र-राशि का स्वामी हो तो जातक के लिए शनि का दुष् - प्रभाव औरों की अपेक्षा बहुत कम होता है ! यदि ऐसे जातक के कुंडली में उनके योगकारक ग्रहों की यदि दशा- अन्तर्दशा भी चल रहा हो तो यही शनि की साढ़े-सती उनके लिए वरदान भी सिध्ध होती है ! *** ** शनि की साढ़े-सती एवं ढैया के उपाय :
शनि की ढैया या साढेसाती के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए निम्न-लिखित उपाय करें ---
1. - मन्त्र
(क) - महामृत्युंजय मन्त्र का सवा लाख जप ( नित्य 10 माला , 125 दिन ) करें -
" ॐ हौम् ॐ ज्ञूं ॐ सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टि-वर्धनम् उर्वरुक्मीव बन्धनान् - मृत्योर्मुक्षीय -मामृतात् ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ ज्ञूं ॐ हौम् ॐ "
(ख ) - शनि देव के निम्न मन्त्र का जाप 21 दिन में 23000 जपें -
- " ॐ प्राम प्रीम प्रौम सः शनये नमः "
- " ॐ शन्नो-देविर्भिष्ट-य आपो भवन्तु पीतये ! शंयोर्भिश्र्वन्तु नः ! ॐ शं शनैश्चराय नमः "
- " ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ! छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरं "
2. स्त्रोत
- साढेसाती पिडानाशक स्त्रोत -
( क) -
कोनाश्थः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रो-अंतको यमः ! सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः !!
तानी शनि - नामानि जपेदाश्वथ- सन्निधौ ! शनैश्चाराक्रिता पीडा न कदाचित भविष्यति !!
या
( ख ) -
नमस्ते कोण- संस्थय पिंग्लाय नमोस्तुते ! नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते !!
नमस्ते रौद्र - देहाय नमस्ते चान्तकाय च ! नमस्ते यम् -संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो !!
नमस्ते यमद - संज्ञाय शनैस्वर नमोस्तुते ! प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रन्तस्य च !!
3. व्रत
शनिवार का व्रत रखें ! व्रत के दिन शनिदेव की पूजा ( कवच , स्त्रोत , मन्त्र जप ) करें ! शनिवार व्रत कथा पढना भी लाभकारी रहता है ! व्रत के दिन दूध , लस्सी तथा फलों का रस ग्रहण करें , सायंकाल हनुमान जी या भैरव जी का दर्शन करें ! काले उड़द की खिचडी ( काला नमक मिला सकते हैं ) या उड़द की दाल का मीठा हलवा ग्रहण करें !
4. औषधि
प्रति शनिवार सुरमा , काले तिल , सौंफ , नागरमोथा और लोध मिले हुए जल से स्नान करें !
5. दान
शनि की प्रसन्न्त्ता के लिए उड़द , तेल , नीलम , तिल , कुल्थी , भैंस , लोह , दक्षिणा और श्याम वस्त्र दान करें !
7. टोटका
( क ) - प्रत्येक शनिवार को स्नान करने से पहले पूरे शरीर में सरसों तेल लगाकर ही स्नान किया करें !
( ख ) - प्रत्येक शनिवार को सरसों तेल में अपना चेहरा देखकर उस तेल को दान कर दें !
( ग ) - शनिवार को सायंकाल पीपल वृक्ष के चारों ओर 7 बार कच्चा सूत लपेटें , इस समय शनि के किसी मन्त्र का जप करते रहें ! फिर पीपल के निचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करें , तथा ज्ञात / अज्ञात अपराधों के लिए क्षमा मांगें !
( घ ) - शनिवार के दिन उड़द , तिल , तेल , गुड मिलाकर लड्डू बना ले और जहाँ हल न चला हो वहां गाड़ दें !
( ङः) - संभव तो सिग्नापुर ( महाराष्ट्र ) स्थित शनि देव का दर्शन व पूजन अवश्य करें !
NOTE : उपरोक्त सभी उपाय पूर्णतया परीक्षित हैं , अतः बिना किसी संकोच के आप सभी कर सकते है , फिर भी यदि कोई दिक्कत या समझने में परेशानी हो तो आप निःसंकोच हमसे कभी भी E-मेल द्वारा या सीधे मेरे मोबाइल के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं !~ e-mail Address : ranjan.jyotishacharya@gmail.com ~
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- आचार्य रंजन ( ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ ) , बेगुसराय
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