Wednesday, August 12, 2009
* क्या होता है अधिक मास एवं क्षय मास ...*
-आचार्य रंजन
सौर -वर्ष और चांद्र -वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धी कर दी जाती है । इसी को " अधिक मास " कहते हैं ।
सौर - वर्ष का मान ३६५ दिन , १५ घड़ी , २२ पल और ५७ विपल हैं । जबकि चांद्रवर्ष ३५४ दिन , २२ घड़ी , १ पल और २३ विपल का होता है । इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष १० दिन , ५३ घटी , २१ पल ( अर्थात लगभग ११ दिन ) का अन्तर पड़ता है । इस अन्तर में समानता लाने के लिए चांद्रवर्ष १२ मासों के स्थान पर १३ मास का हो जाता है ।
वास्तव में यह स्थिति स्वयं ही उत्त्पन्न हो जाती है , क्योंकि जिस चंद्रमास में सूर्य - संक्रांति नहीं पड़ती , उसी को " अधिक मास " की संज्ञा दे दी जाती है तथा जिस चंद्रमास में दो सूर्य संक्रांति का समावेश हो जाय , वह " क्षयमास " कहलाता है ।
क्षय -मास केवल कार्तिक , मार्ग व पौस मासों में होता है । जिस वर्ष क्षय-मास पड़ता है , उसी वर्ष अधि-मास भी अवश्य पड़ता है परन्तु यह स्थिति १९ वर्षों या १४१ वर्षों के पश्चात् आती है । जैसे विक्रमी संवत २०२० एवं २०३९ में क्षय - मासों का आगमन हुआ तथा भविष्य में संवत २०५८ , २१५० में पड़ने की संभावना है ।
नोट : क्षय एवं अधिक मासों में विवाह , यज्ञ , मुंडन - आदि शुभ कृत्यों का प्रारम्भ करना निषेध माना जाता है ।
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Labels: ज्योतिष
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