" ज्योतिष एवं वास्तु से सम्बंधित इस ब्लॉग पर आपको ' आचार्य रंजन ' का नमस्कार !! "

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Friday, August 7, 2009

* नक्षत्र एवं उसके स्वामी-ग्रह *

एक अथवा अनेक दैदीप्यमान तारा समूह को " नक्षत्र " (Constellation) कहते हैं । आकाश-मंडल में कूल २७ नक्षत्र हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं ---
* नक्षत्रों के नाम --------- स्वामी ग्रह *
**********************************

१ - अश्वनी - केतु

२ - भरनी - शुक्र

३ - कृतिका - सूर्य

४ - रोहिणी - चंद्रमा

५ - मृगशिरा - मंगल

- आर्द्रा - राहू

७ - पुनर्वसु - गुरु

८ - पुष्य - शनि

९ - आश्लेषा - बुध

१० - मघा - केतु

११ - पूर्व-फाल्गुनी - शुक्र

१२ - उत्तरा-फाल्गुनी - सूर्य

१३ - हस्त - चन्द्र

१४ - चित्रा - मंगल

१५ - स्वाति - राहू

१६ - विशाखा - गुरु

१७ - अनुराधा - शनि

१८ - ज्येष्ठा - बुध

१९ - मूला - केतु

२० - पूर्वा-सादा - शुक्र

२१ - उत्तरा-सादा - सूर्य

२२ - श्रवण - चन्द्र

२३ - धनिष्ठा - मंगल

२४ - शतभिषा - राहू

२५ - पूर्वा -भाद्रपद - गुरु

२६ - उत्तरा-भाद्रपद - शनि

२७ - रेवती - बुध

- आचार्य रंजन (ज्योतिषाचार्य & वास्तु विशेषज्ञ ), बेगुसराय, बिहार

*गण्डमूल या सताईशा नक्षत्र *

- आचार्य रंजन , बेगुसराय,बिहार
रेवती , अश्विनी , आश्लेषा , मघा , ज्येष्ठा तथा मूला - ये "गण्डमूल- नक्षत्र " या "सताईशा नक्षत्र " कहलाते हैं । इन नक्षत्रों के विशेष चरण में उत्पन्न बालक / बालिका स्वयं अपने या माता - पिता के स्वास्थ्य , व्यवसाय एवं उन्नति आदि के सम्बन्ध में अशुभ होते हैं ।
गण्डमूल -नक्षत्र में उत्पन्न जातक के नक्षत्र की लगभग 27 दिन पश्चात उसी नक्षत्र में विद्वान् एवं योग्य ब्रह्मण द्वारा शांति करवानी चाहिए । यदि जन्म-काल के समय शांति न करवाई गयी हो तो , जातक के जन्म-दिन के निकट उसी नक्षत्र में दान-पूजन करवा लेना शुभ-कारक रहता है ।
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