" ज्योतिष एवं वास्तु से सम्बंधित इस ब्लॉग पर आपको ' आचार्य रंजन ' का नमस्कार !! "

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Saturday, August 15, 2009

* संवत्सर एवं प्रत्येक - वर्ष का संवत्सर निकलने की विधि जानें चुटकियों में *

~आचार्य रंजन
बृहस्पति मध्यम गति से जितने समय में एक राशि का संचरण करता है , उसे बाहर्श्पत्य वर्ष कहते है और इसे ही संवत्सर भी कहा जाता है । संवत्सरों की कुल संख्या साठ (६०) है , जिनकी पुनरावृति होती रहती है ।
विवाह , यज्ञ , अनुष्ठान आदि शुभ कार्यों के आरम्भ में संवत्सर का उच्चारण अवश्य किया जाता है ।
* साम्वात्सरों का नाम क्रमशः निम्नलिखित हैं : -
- प्रभव
- विभव
- शुक्ल
- प्रमोद
- प्रजापति
- अंगीरा
- श्री मुख
- भाव
- युव
१०
- धाता
११- ईश्वर
१२
- बहुधान्य
१३- प्रमाथी
१४- विक्रम
१५
- वृष
१६
- चित्रभानु
१७- सुभानु
१८- तारण
१९
- पार्थिव
२०-व्यय
२१- सर्वजित्
२२- सर्वधारी
२३- विरोधी
२४
- विकृति
२५- खर
२६- नंदन
२७- विजय
२८
- जय
२९- मन्मथ
३०
- दुर्मुख
३१- हेम्लंबी
३२- विलम्बी
३३- विकारी
३४
- शार्वरी
३५
- प्लव
३६
- शुभकृत
३७- शोभन
३८- क्रोधन
३९
- विशवावशु
४०- पराभव
४१- प्लवंग
४२- किलक
४३- सौम्य
४४
- साधारण
४५- विरोधकृत
४६
- परीधावी
४७
- प्रमादी
४८
- आनंद
४९- राक्षस
५०- नल
५१
- पिंगल
५२- कालयुक्त
५३- सिध्धार्थ
५४- रौद्र
५५
- दुर्मति
५६
- दुंदुभी
५७- रुधिरोदगारी
५८
- रकताक्षी
५९
- क्रोधन
६०- क्षय
**************************************************************
* प्रत्येक वर्ष की संवत्सर निकलने की विधि : -
जिस विक्रमी संवत् में संवत्सर जानना हो , उसमें ९ जोड़कर प्राप्त संख्या को ६० द्वारा भाग देने पर , जो शेष बचे , उसमें १ जोड़ देने पर उस वर्ष का या उस विक्रमी संवत् के संवत्सर का नाम ऊपर दिए गए सूचि में से प्राप्त हो जाएगा ।
उदाहरणार्थ : यदि विक्रम संवत् २०५६ में संवत्सर जानना हो , तो संवत् २०५६ में जमा कर देने पर २०६५ वर्ष बनेइनको ६० द्वारा भाग देने पर ३४ लब्धि तथा शेष २५ बचे , इस संख्या में जमा कर देने से संख्या २६ बनीउपरोक्त तालिका अनुसार विक्रम संवत २०५६ में २६ वां अर्थात् नंदन नामक संवत्सर होगा

* जानें उत्तरायण एवं दक्षिणायन *

~~आचार्य रंजन , प्रो० कोलोनी , बेगुसराय , बिहार
एक संवत् ( वर्ष ) में दो अयन होते हैं- उत्तरायण एवं - दक्षिणायन जब तक सायन सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि पर्यंत रहता है , तब तक छः मासों की अवधी को उत्तरायण काल कहा जाता हैयह अवधी लगभग २२ दिसम्बर से प्रायः २०/२१ जून तक रहती हैउत्तरायण में शिशिर , वसंत और ग्रीष्म - ये तीन ऋतुएँ होती हैंउत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता है , इसीलिए इसी काल में नूतन गृह प्रवेश , दीक्षा ग्रहण , देव प्रतिष्ठा , यज्ञ , व्रत - नुश्ठान , विवाह , मुंडन आदि कार्य प्रशस्त माने जाते हैं जब तक सायन सूर्य कर्क राशि से धनु राशि पर्यंत संचारन्सील होता है , तब तक इन छः मासों की अवधी को दक्षिणायन काल कहा जाता हैयह अवधी प्रायः २१/२२ जून से २१ दिसम्बर तक लगभग रहती हैदक्षिणायन में वर्षा , शरद और हेमंत - इन तीन ऋतुओं का समावेश रहता है यह अवधी देवताओं की रात्रि मानी जाती हैइसीलिए दक्षिणायन काल में मुंडन , यज्ञोपवित आदि विशेष शुभ कृत्यों का निषेध माना जाता है , परन्तु तामषिक प्रयोग हेतु प्रशस्त माने जाते हैं
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