-आचार्य रंजन
जिस प्लाट पर भवन या घर का निर्माण करना हो यदि वहां पर बछड़े वाली गाय को लाकर बांधा जाए तो वहां संभावित वास्तु दोषों का स्वत: निवारण हो जाता है। कार्य निर्विघ्न पूरा होता है और समापन तक आर्थिक बाधाएं नहीं आतीं।
गाय के प्रति भारतीय आस्था को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। गो-सेवा को एक कत्र्तव्य के रूप में माना गया है। पशु रूप में गाय सृष्टिमातृका कही जाती है। गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिए निवेदन के प्रसंग बहुत प्रसिद्ध हैं।
‘समरांगण सूत्रधार’ जैसा प्रसिद्ध वृहद् वास्तु ग्रंथ गो रूप में पृथ्वी-ब्रrादि के समागम-संवाद से ही आरंभ होता है। वास्तुग्रंथ ‘मयमतम्’ में कहा गया है कि भवन निर्माण का शुभारंभ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बांधना चाहिए जो सवत्सा या बछड़े वाली हो।
नवजात बछड़े को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही मान्यता वास्तुप्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि में भी आई है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है, उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है- निविष्टं गोकुलं यत्र श्वांस मुंचति निर्भयम्। विराजयति तं देशं पापं चास्याप कर्षति॥
जिस प्लाट पर भवन या घर का निर्माण करना हो यदि वहां पर बछड़े वाली गाय को लाकर बांधा जाए तो वहां संभावित वास्तु दोषों का स्वत: निवारण हो जाता है। कार्य निर्विघ्न पूरा होता है और समापन तक आर्थिक बाधाएं नहीं आतीं।
गाय के प्रति भारतीय आस्था को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। गो-सेवा को एक कत्र्तव्य के रूप में माना गया है। पशु रूप में गाय सृष्टिमातृका कही जाती है। गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिए निवेदन के प्रसंग बहुत प्रसिद्ध हैं।
‘समरांगण सूत्रधार’ जैसा प्रसिद्ध वृहद् वास्तु ग्रंथ गो रूप में पृथ्वी-ब्रrादि के समागम-संवाद से ही आरंभ होता है। वास्तुग्रंथ ‘मयमतम्’ में कहा गया है कि भवन निर्माण का शुभारंभ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बांधना चाहिए जो सवत्सा या बछड़े वाली हो।
नवजात बछड़े को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही मान्यता वास्तुप्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि में भी आई है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है, उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है- निविष्टं गोकुलं यत्र श्वांस मुंचति निर्भयम्। विराजयति तं देशं पापं चास्याप कर्षति॥
गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। ऐसे घरों में सर्वबाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है। बच्चों में भय नहीं रहता। विष्णु पुराण में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण पूतना के दुग्धपान से डर गए तो नंद दंपती ने गाय की पूंछ घुमाकर उनकी नजर उतारी और भय का निवारण किया। सवत्सा गाय के शकुन लेकर जाने से कार्य सिद्ध होता है।
पद्मपुराण, और कूर्मपुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लांघकर नहीं जाना चाहिए। किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिए जाते समय गाय के रंभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ है। संतान लाभ के लिए घर में गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है।
शिवपुराण व स्कंदपुराण में कहा गया है कि गो सेवा और गोदान से यम का भय नहीं रहता। गाय के पांव की धूली का भी अपना महत्व है। यह पाप विनाशक है, ऐसा गरुड़पुराण और पद्मपुराण का मत है।
पद्मपुराण, और कूर्मपुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लांघकर नहीं जाना चाहिए। किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिए जाते समय गाय के रंभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ है। संतान लाभ के लिए घर में गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है।
शिवपुराण व स्कंदपुराण में कहा गया है कि गो सेवा और गोदान से यम का भय नहीं रहता। गाय के पांव की धूली का भी अपना महत्व है। यह पाप विनाशक है, ऐसा गरुड़पुराण और पद्मपुराण का मत है।
साभार :-दैनिक भास्कर
blogvani men aapka swagat hai.
ReplyDeleteआपका ब्लाग वाकई बहुत अच्छा है. इसे नियमित रूप से अद्यतन करते रहने से आप पुण्य के भागीदार होंगे.
ReplyDeletejandar bat batai aapne,narayan narayan
ReplyDeleteचिट्ठाजगत में आपका स्वागत है .नियमित लिखते रहें इससे संवाद-संपर्क बना रहता है , ढेर सारी शुभकामनाएं !
ReplyDeletehi ,liked your blog.
ReplyDeletei visit it very often. it is really very informative.keep writing.
बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग देखकर। अभी तक मैं ऑपेरा ब्राउजर उपयोग कर रहा था उसमें हिन्दी बड़ा उल्टा पुल्टा आ रहा था । आपका प्रयास सराहनीय है ।
ReplyDeletekya patrika dekhte hai aap ?
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