" विष्टि " नामक करण ( तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं ) को ही भद्रा कहते हैं । भद्राकाल में विवाह , मुंडन , गृहारंभ , यज्ञोपवित , रक्षाबंधन , नवीन व्यवसाय आदि शुभ कार्यों का प्रारम्भ करना वर्जित माना जाता है । परन्तु भद्रा काल में शत्रु का उच्चाटन , यज्ञ करना , ऑपरेशन , मुकदमा करना इत्यादि सम्बंधित कृत्य करने प्रशस्त मने जाते हैं ।
एक पक्ष में लगभग ४ बार भद्रा की आवृति होती है
शुक्ल - पक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्ध में तथा चतुर्थी एवं एकादशी तिथि के उत्तरार्ध में भद्रा होती है , जबकि कृष्णपक्ष की तृतीया और दशमी तिथि के उत्तरार्ध में तथा सप्तमी एवं चतुर्दशी तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा की व्याप्ति रहती है ।
नोट : प्रायः सभी पंचांगों में भद्रा का प्रारम्भ एवं अंत दिया रहता है । - आचार्य रंजन , बेगुसराय , बिहार
Thursday, August 13, 2009
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