~~आचार्य रंजन , प्रो० कोलोनी , बेगुसराय , बिहार
एक संवत् ( वर्ष ) में दो अयन होते हैं । १- उत्तरायण एवं २ - दक्षिणायन । जब तक सायन सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि पर्यंत रहता है , तब तक छः मासों की अवधी को उत्तरायण काल कहा जाता है । यह अवधी लगभग २२ दिसम्बर से प्रायः २०/२१ जून तक रहती है । उत्तरायण में शिशिर , वसंत और ग्रीष्म - ये तीन ऋतुएँ होती हैं । उत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता है , इसीलिए इसी काल में नूतन गृह प्रवेश , दीक्षा ग्रहण , देव प्रतिष्ठा , यज्ञ , व्रत - नुश्ठान , विवाह , मुंडन आदि कार्य प्रशस्त माने जाते हैं । जब तक सायन सूर्य कर्क राशि से धनु राशि पर्यंत संचारन्सील होता है , तब तक इन छः मासों की अवधी को दक्षिणायन काल कहा जाता है । यह अवधी प्रायः २१/२२ जून से २१ दिसम्बर तक लगभग रहती है । दक्षिणायन में वर्षा , शरद और हेमंत - इन तीन ऋतुओं का समावेश रहता है । यह अवधी देवताओं की रात्रि मानी जाती है । इसीलिए दक्षिणायन काल में मुंडन , यज्ञोपवित आदि विशेष शुभ कृत्यों का निषेध माना जाता है , परन्तु तामषिक प्रयोग हेतु प्रशस्त माने जाते हैं ।
Saturday, August 15, 2009
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