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Saturday, September 19, 2009

* शनि देव की साढ़े - सती ...........??? *


 * शनि   देव  की  साढ़े - सती  ...........???  * 

** क्या होता है साढ़े -सती ......?

             जन्म-राशि  अर्थात  चन्द्र राशि  ( चंद्रमा जिस राशि में रहती है ) से  गोचर  में  जब  शनि  देव  द्वादश , प्रथम  एवं  द्वितीय  स्थानों  में  परिभ्रमण  करते  हैं ,तो  इस  साढ़े  सात  वर्ष  ( क्योंकि शनि एक राशि में लगभग ढाई - वर्षों तक चलते है ) के  समय  को  शनि  की   साढ़े - सती   कहते  हैं !
            उदाहरण के लिए , यदि  आपकी  जन्म  राशि  कर्क  है  तो  शनि देव  गोचर  में  जब  मिथुन , कर्क  व सिंह  राशि   में  भ्रमण  करेंगे  तो  शनि   की  साढ़े - सती  कहलाएगी !
           प्रायः  प्रत्येक  व्यक्ति  के  जीवन  में  तीन  चक्र / बार  साढेसाती  आती  है , और  यह  लगभग  साढ़े बाईस  वर्ष  के  उपरांत   पुनः  आगमन  होता  है  तथा  अगले  साढ़े सात व र्ष  तक  अपने   प्रभाव  में  जातक / जातिका  को  रखते  हैं  !
          शनि  के  साढ़े-साती  का  प्रथम चक्र  अत्यंत  प्रबल  होता  है  इस  अवधि  में  आपको   शारीरिक  कष्ट , अवरोध  एवं  अनेकानेक  प्रकार  से   क्षति  उठानी  पड़   सकती  है !  इस  अवधि  में  माता - पिता  को  भी  कष्ट   उठाना  पड़ता   है !
         द्वितीय  आवृति  में  शनि  देव  अपेक्षाकृत  मध्यम  प्रभाव  डालता  है ! इस  अवधि  में  आपकी   अपने श्रम  व  संघर्ष  से  उन्नति   होगी !  मानसिक  अशांति  अवश्य  बनी  रह  सकती  है ,  किन्तु  भौतिक  उन्नति अवश्य  होती  है !  माता - पिता  या  बुजुर्गों  का  वियोग  सहन  करना  पड़  सकता  है !
        तृतीय  आवृति   में  शनि  देव  कठोर  फल  देते  हैं  !  इस  अवधि   में  मारक  का  प्रभाव  अधिक  होने   के  कारण  आपको   प्रबल  शारीरिक  कष्ट  हो  सकता  है !  इस  आक्रमण  से  सौभाग्यशाली   ही  सुरक्षित  रह  पाते   हैं !
 ** साढ़े-सती का फल .......   
            प्राचीन  काल  से  सामान्य  भारतीय  जन-मानस  में  यह  धारणा  प्रचलित  है  की   शनि  की  साढ़े-सती  बहुधा  मानसिक , शारीरिक और आर्थिक - दृष्टि   से  दुखदायी  एवं  कष्ट-प्रद  होती  है ! शनि   की   साढ़े-सती सुनते  ही  लोग  चिंतित   और  भयभीत  हो   जाते   हैं ! साढेसाती  में  असंतोष , निराशा , आलस्य , मानसिक तनाव , विवाद , रोग -रिपु -ऋण से कष्ट , चोरों व अग्नि  से  हानि  और  घर - परिवार  में  बड़ों - बुजुर्गों  की मृत्यु  जैसे   अशुभ  फल   होते  हैं ! शास्त्र  शनि  की  साढ़े-सती  का  फल  इस   प्रकार  बताते  हैं --

            " कल्याणं  खलु  यच्छति  रविसुतो  राशौ  चतुर्थष्ट  में  व्याधि  बन्धुविरोध्देश्गम्नम  क्लेश्चम  चिंताधिकम !!  
              राशौ  द्वादश-शिर्श्जन्म्ह्रिद्ये  पादौ  द्वितीये  शानिर्नानाक्लेश -करोअपी  दुर्जन  भयम  पुत्रान  पशून्  पिदनम !!  
               हानिः   स्यांमर्नम  विदेश्गाम्नाम  सौख्यं  च  साधारणं  रामारिध्य- विनाशनम   प्रकृते  तूर्याष्ट्मे  वाथवा !! "

       अर्थात् ,  चन्द्र  राशि  से  चौथे   या   आठवें   स्थान  में  शनि  आने  पर  रोग  , भाइयों   से   लड़ाई   ,  विदेश   में    प्रवास   ,  कष्ट  ,  चिंता  ये  फल   मिलते   हैं ! चन्द्र   राशि  से   बारहवें  ,  पहले   या  दूसरे   स्थान  में  गोचर  के  शनि   से  ( साढ़े-सती  में )  सिर  ,  ह्रदय  ,  पैर  में   पीडा  होती  है  ,  दुष्टों  से   भय  होता   है  एवं  पुत्रों  और  पशुओं   को  कष्ट   होता   है !
          यह   सामान्यतः    पाया   गया   है   कि   साढ़े-सती   की    तीन   ढैया   में   से  एक   शुभ  ,  एक  मध्यम   तथा  एक   अशुभ   फलदायी   होती  है  ! इसका    निर्णय  शनि   के    अष्टक   वर्ग   तथा   सर्वाश्टक   वर्ग   में   प्राप्त    शुभ    रेखाओं   की    संख्या   के   आधार   पर    किया   जाता   है !    यदि  शनि  अष्टक   वर्ग    में   चार   रेखाएं   तथा    सर्वाश्टक   वर्ग   में   अठाईस   रेखाएं   हैं  तो   शनि  देव  मिश्रित   फलदायी    होते  हैं !   इससे  कम  हैं  तो  अशुभ   तथा   अधिक   होने   पर   शुभ   फल   प्रदान - कर्ता   होते   हैं ! 

         साढ़े-सती  के  प्रथम   ढैया   का  फल  :       
           इस   अवधि   में  शनि    चन्द्र  राशि   से  बारहवें   भाव  में  भ्रमण    करते    हैं  तथा  दूसरे ,  छठे  ,   नवें  भावों   पर  पूर्ण   दृष्टि    होती    है !  प्रथम   ढैया  में   शनि  का   निवास   सिर   पर   रहता   है   ! अतः  मानसिक  -  शारीरिक   सुख  में  कमी    आती   है !  नेत्रों  की     व्याधि  ,   चश्में   आदि   का  प्रयोग  संभव   है  !  अचानक  आर्थिक   हानि   होती  है  !  अवांक्षित  अतिरिक्त   व्यय  ,  अपव्यय  होता  है ! जातक   आर्थिक  रूप   से   व्यथित   रहता   है  आय  की  अपेक्षा   व्यय  अधिक   होता    है !  कटुम्ब   से   वियोग   हो  सकता  है ! परिवार    में   अशांति   रहती   है  ! पिता   को   कष्ट  होता  है !  पिता   से   तनाव  होता  है ! भाग्य   पतन  का  भय  रहता   है ! कार्यों   में   परेशानियां  एवं    विलंब  होता   है ! प्रयासों  के   सुफल   नहीं  मिलते  हैं !  लोगों  से   सहयोग   नहीं    मिलता ! राजकीय   लोगों  से   पीडा  संभव  है !   आध्यात्मिकता   में   रूचि  जाग्रत  होती  है  ! दुर्घटनाओं  का   भय   होता   है  !  व्यर्थ   भ्रमण   होता  है !  दूर  की   यात्रा  करनी   पड़ती   है , जिसमें   कष्ट  उठाना   पड़ता    है !  यह  शनि  पंचम   भाव  से   अष्टम  होता  है  ,  अतः  संतान    के   लिए   भी   यह    समय   कष्टप्रद   होता   है !
     साढ़े-सती   की  द्वितीय  ढैया  का  फल  :       
                 इस  अवधि   में   शनि   चन्द्र  राशि   पर   भ्रमण   करता   है  तथा  तीसरे  ,  सातवें   एवं   दशवें  भावों   पर  पूर्ण    दृष्टि   होती  है !  शनि   इस   ढैया  में  उदर     भाग   में   रहता  है !  अतः   शरीर   के   सम्पूर्ण   मध्य   भाग   में   रोग   व्याधि    संभव  होती  है  ! शारीरिक   तेज   प्रभावित  होता   है  ! बुद्धि   काम   नहीं करती  ,  गलत   निर्णय   होते    हैं !  भाईयों   से   तथा  व्यापार   में  साझीदार    से    विवाद   होता  है  !  पत्नी  को    शारीरिक  कष्ट   अथवा   पत्नी  से   झगडा   होता    है  !  आर्थिक   चिंताएं   निरंतर   रहती    है !  मानसिक   स्तर  पर   प्रबल  उद्वेलन   रहता   है !   व्यर्थ   का    भय  व्यथित   करता  है !  कोई   कार्य   मनोनुकूल   नहीं   होता ,  अपूर्ण  कार्य   दुखी   करते  हैं   एवं  व्यवधान  प्रबल  रहते  हैं ! पारिवारिक   एवं  व्यावसायिक   जीवन  अस्त-व्यस्त  रहता  है ! किसी  सम्बन्धी   को  मारक   कष्ट  होता   है ! दूर  स्थानों   की   यात्राएं  ,  शत्रुओं  से   कष्ट  ,  आत्मीय  जनों   से   अलगाव  ,  व्याधि  ,  संपत्ति  क्षति   व  सामाजिक  पतन  ,  मित्रों   का   अभाव   एवं    कार्यों   में   अवरोध   इस   चरण  के   फल   हैं !
         साढ़े-सती  के  तृतीय  ढैया  के  फल    :                 
             इस   अवधि   में  शनि   चन्द्र   राशि   से  दूसरे  भ्रमण  करता  है   तथा  चौथे  ,  आठवें  ,   ग्यारहवें  भावों  पर  पूर्ण    दृष्टि   होती   है ! उतरती   साढ़े - सती   में  शनि  पैरों   पर    रहते   हैं ! अतः   इस   अवधि   में   पैरों  में   कष्ट   होता  है ! शारीरिक   दृष्टि   से   निर्बलता   आती   है  !  दैहिक  रूप  से  जड़ता   का  अनुभव   होता   है  ,  शरीर  में  आलस्य   रहता   है ! आनंद   बाधित   होता  है !  व्यर्थ   के  विवाद   उत्त्पन्न  होते  हैं !  आत्मीयों   से  अकारण   संघर्ष  होता  है , उन्हें   गंभीर  बिमारी   अथवा   किसी   को   मरण  तुल्य   कष्ट  होता   है  ! सुखों  का  नाश  होता   है ,  पदाधिकारी   पर  संकट  आता   है ! व्यय   अधिक   होता   है !   पैसा  आता   है   किन्तु   उसी  गति  से   व्यय   भी   होता    है ! निम्न  श्रेणी   के  लोगों   से    कष्ट  मिलता   है ! अष्टम   पर  दृष्टि   होने  से    आयु    प्रभावित   होती   है  !  चतुर्थ  पर    दृष्टि  होने  से   गृह  सुख  ,  माता - सुख   , वाहन  सुख   आदि  तथा  भौतिक  सुख-सुविधाओं    में   बाधा  आती   है !
   ***  अनुभव  में   मैंने   पाया   है   की   सम्पूर्ण   साढ़े-सती   पीडा  दायक   नहीं  होते   हैं ,  बल्कि   साढ़े-सती  के   समय   में   कई  लोगों   को   अत्यधिक   शुभ   फल   जैसे  विवाह  ,  संतान  का   जन्म  ,  नौकरी  -  व्यवसाय    में   उन्नति  ,  चुनाव   में   विजय  ,  विदेश   यात्रा   इत्यादि   भी    मिलते    हैं ! अतः   यदि   जन्म  कुंडली   में   शनि  बलवान   (  उच्च  ,  स्व्क्षेत्रिय  आदि  )   या    योगकारक    हो   या  चन्द्र-राशि  का  स्वामी   हो   तो    जातक  के   लिए  शनि    का  दुष् - प्रभाव   औरों   की   अपेक्षा   बहुत  कम   होता   है  ! यदि   ऐसे  जातक  के   कुंडली में   उनके   योगकारक    ग्रहों  की   यदि   दशा- अन्तर्दशा   भी  चल   रहा  हो  तो  यही   शनि   की   साढ़े-सती   उनके   लिए   वरदान   भी  सिध्ध   होती   है  ! ***     


 ** शनि  की  साढ़े-सती   एवं   ढैया  के   उपाय  :          

      शनि   की  ढैया  या   साढेसाती    के   अशुभ   प्रभावों   को   कम    करने  के  लिए   निम्न-लिखित   उपाय  करें  ---
1. -  मन्त्र  

      (क) - महामृत्युंजय   मन्त्र   का   सवा  लाख    जप  ( नित्य  10  माला  ,  125  दिन  )  करें  - 
               " ॐ   हौम्   ॐ   ज्ञूं   ॐ   सः   ॐ   भूः   ॐ    भुवः   ॐ   स्वः   ॐ   त्र्यम्बकं   यजामहे   सुगंधिम्  पुष्टि-वर्धनम्   उर्वरुक्मीव  बन्धनान् - मृत्योर्मुक्षीय -मामृतात्   ॐ   स्वः   ॐ   भुवः   ॐ   भूः   ॐ   सः   ॐ   ज्ञूं   ॐ   हौम्   ॐ  "    
        (ख ) - शनि   देव  के   निम्न   मन्त्र   का   जाप   21 दिन   में  23000  जपें  -
                - " ॐ  प्राम  प्रीम  प्रौम   सः  शनये   नमः  "
                - " ॐ  शन्नो-देविर्भिष्ट-य  आपो   भवन्तु   पीतये ! शंयोर्भिश्र्वन्तु   नः  !  ॐ  शं   शनैश्चराय  नमः  "
                - " ॐ  नीलांजन   समाभासं   रविपुत्रं   यमाग्रजम्   !  छायामार्तण्ड    संभूतं  तं  नमामि  शनैश्चरं  "
 2.   स्त्रोत 
            - साढेसाती  पिडानाशक   स्त्रोत  -
             ( क) - 
                    कोनाश्थः  पिंगलो   बभ्रुः   कृष्णो  रौद्रो-अंतको    यमः  !  सौरिः  शनैश्चरो   मन्दः   पिप्पलादेन   संस्तुतः !!
                    तानी  शनि  -  नामानि  जपेदाश्वथ- सन्निधौ !  शनैश्चाराक्रिता  पीडा   न  कदाचित   भविष्यति !!
                                                                     या 
               ( ख ) -
                    नमस्ते   कोण- संस्थय  पिंग्लाय   नमोस्तुते  ! नमस्ते  बभ्रुरूपाय   कृष्णाय   च  नमोस्तु   ते !!
                  नमस्ते   रौद्र - देहाय   नमस्ते   चान्तकाय   च  !  नमस्ते   यम् -संज्ञाय  नमस्ते  सौरये   विभो !!
                   नमस्ते   यमद - संज्ञाय   शनैस्वर   नमोस्तुते  !  प्रसादं  कुरु  देवेश  दीनस्य   प्रन्तस्य   च    !!
3.   व्रत          

             शनिवार   का   व्रत   रखें !  व्रत  के  दिन  शनिदेव   की   पूजा   ( कवच , स्त्रोत , मन्त्र  जप  )  करें ! शनिवार    व्रत   कथा   पढना   भी   लाभकारी     रहता   है  !  व्रत  के   दिन   दूध  , लस्सी    तथा   फलों  का   रस  ग्रहण  करें   ,  सायंकाल  हनुमान  जी   या   भैरव    जी   का   दर्शन   करें  ! काले   उड़द   की   खिचडी   ( काला   नमक   मिला  सकते   हैं )  या  उड़द   की  दाल   का   मीठा   हलवा   ग्रहण  करें !       
4.   औषधि            
                प्रति   शनिवार  सुरमा  ,  काले   तिल  , सौंफ  ,   नागरमोथा   और  लोध  मिले  हुए  जल  से  स्नान   करें !
5.    दान         

                 शनि  की   प्रसन्न्त्ता    के  लिए   उड़द  ,  तेल   ,  नीलम  ,  तिल  ,  कुल्थी  ,  भैंस  , लोह  ,  दक्षिणा  और   श्याम   वस्त्र   दान   करें !
7.    टोटका      
                   ( क ) - प्रत्येक   शनिवार   को   स्नान   करने  से   पहले   पूरे   शरीर   में   सरसों   तेल  लगाकर   ही  स्नान   किया   करें  !
                   ( ख ) - प्रत्येक   शनिवार   को   सरसों   तेल  में   अपना   चेहरा   देखकर   उस   तेल   को  दान    कर   दें  ! 
                   ( ग ) - शनिवार   को   सायंकाल   पीपल   वृक्ष    के  चारों   ओर  7  बार   कच्चा   सूत   लपेटें  ,  इस   समय   शनि   के   किसी    मन्त्र    का     जप    करते   रहें   !  फिर   पीपल    के  निचे   सरसों    के   तेल   का    दीपक   प्रज्ज्वलित   करें  ,  तथा   ज्ञात  /  अज्ञात   अपराधों    के   लिए   क्षमा    मांगें !
                   ( घ ) - शनिवार   के   दिन   उड़द  ,  तिल , तेल  ,  गुड  मिलाकर    लड्डू   बना   ले   और   जहाँ   हल  न    चला   हो   वहां   गाड़    दें !
                     ( ङः) - संभव   तो  सिग्नापुर  ( महाराष्ट्र  )  स्थित   शनि  देव  का  दर्शन   व   पूजन   अवश्य   करें  ! 
NOTE :  उपरोक्त   सभी   उपाय   पूर्णतया   परीक्षित    हैं   , अतः   बिना  किसी   संकोच    के   आप   सभी   कर  सकते  है   ,   फिर  भी   यदि  कोई    दिक्कत   या  समझने   में    परेशानी    हो   तो    आप   निःसंकोच   हमसे    कभी  भी   E-मेल   द्वारा   या    सीधे   मेरे   मोबाइल    के  माध्यम    से   संपर्क   कर   सकते   हैं  !
~ e-mail  Address :  ranjan.jyotishacharya@gmail.com ~
# Mobile No.- +91-9431236090   &  Tel. No.- +91-6243-243901
           - आचार्य   रंजन  ( ज्योतिषाचार्य  एवं   वास्तु   विशेषज्ञ  ) , बेगुसराय 
  आपकी    प्रतिक्रिया    का   सदैव    स्वागत    है  

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